हिन्दुओं की जाति पूछने वाली कांग्रेस पार्टी मुसलमानों की जाति पर चुप क्यों हो जाति है ?
इस्लाम धर्म को लेकर पूरी दुनिया सिर्फ यहीं जानती हैं कि शिया और सुन्नी समुदाय हीं इस्लाम है जबकि सच्चाई यह बिल्कुल भी नहीं है, शिया -सुन्नी के अलावा भी इस्लाम में बहुत सारी जातियां और अलग-अलग पंथ और संप्रदाय हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैसे ही कहा कि हिंदुओं को जातियों में बांटने वाली कांग्रेस पार्टी कभी मुसलमानों की जाति क्यों नहीं पूछती है? उसके बाद से ही इस देश में कुछ लोगों ने हो-हल्ला मचाना स्टार्ट कर दिया कि इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं होता है. लेकिन सच्चाई यह है कि हिंदुओं की जाति और वर्ण व्यवस्था पर हमेशा सवाल उठाने वाले लोग अक्सर यह भूल जाते हैं कि सबसे ज्यादा भेदभाव और ऊच-नीच मुसलमानों में ही होता है,
इस्लाम धर्म को लेकर पूरी दुनिया सिर्फ यहीं जानती हैं कि शिया और सुन्नी समुदाय हीं इस्लाम है जबकि सच्चाई यह बिल्कुल भी नहीं है, सच्चाई तो यह है कि शिया -सुन्नी के अलावा भी इस्लाम में बहुत सारी जातियां और अलग-अलग पंथ और संप्रदाय हैं.
- अगर मुख्य तौर पर देखा जाए तो मुस्लिम चार समुदायों में बंटे हुए हैं: शिया, सुन्नी, सूफी और अहमदिया;
- सुन्नी में भी पांच अलग-अलग वर्ग हैं; हनफ़ी, शफी, हनबली और मालिकी;
- इसके अलावा शिया भी तीन प्रकार के होते हैं; बारहवारी, इस्माइली और ज़ैदी;
- सूफी मुस्लिम भी दो प्रकार के होते हैं; बा-शरा और बे-शरा;
- अहमदिया मुसलमान को तो इस्लाम में सबसे नीचे दर्जे का मुसलमान माना जाता है.
जिस प्रकार हिंदू को उच्च जाति, मध्यम और निम्न श्रेणी में बाटा गया हैं ठीक उसी प्रकार मुसलमान में भी तीन जाति समूह होते हैं जिसमें अशराफ को सामान्य श्रेणी का दर्जा प्राप्त हैं उसी तरह अजलाफ को ओबीसी यानी मध्यम जाति का दर्जा प्राप्त हैं और अरजाल को दलित यानि अति-पिछड़ा की श्रेणी में रखा गया है .
अब बात अगर हिंदू धर्म की की जाए तो हमारे यहां समानता के अधिकार के तहत आज हिंदुस्तान के बड़े-बड़े मंदिरों में दलित पुजारी की नियुक्ति हो रही है वही दूसरी तरफ इस्लाम में हर समुदाय हर पंत का अलग-अलग मस्जिद और इबादतघर हैं .
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हिंदू धर्म के श्मशान घाट पर हर जाति का बराबर का अधिकार होता है वहां हर जाति के लोगों को बिना भेदभाव के अंतिम संस्कार करने का बराबर का अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन मुसलमानो के हर समुदाय के लिए अपना अलग-अलग कब्रिस्तान है और किसी की हिम्मत नहीं हैं कि वो मुस्लिम समुदाय के ही दूसरे समुदाय के कब्रिस्तान में जाकर किसी शव को सुपुर्द-ए-खाक कर दें!
अब सबसे अहम और विचारणीय बात तो यह है कि जिस इस्लाम में जन्म से लेकर मौत तक सिर्फ भेदभाव ही किया जाता है और आपस में ही खुद के नबीं को सर्वश्रेष्ठ बताने की होड़ मची हो, वहीं लोग हिंदू धर्म के वर्ण व्यवस्था पर सवाल उठाने लगते है I
हमारे यहां रविदास, रैदास तुलसीदास और वाल्मीकि को संत मानकर उन्हें पूजने की परंपरा हैं और तुम्हारे यहां महज एक सत्ता के लिए अपने बाप, दादा. भाई और अपने नबी को धोखे से मारने का इतिहास है I
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