कनाडा चुनाव में खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की करारी हार, ट्रूडो सरकार का 'किंगमेकर' अब राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक

ओटावा, 29 अप्रैल (आईएएनएस):
कभी कनाडा की राजनीति में ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाने वाले और खालिस्तान समर्थक माने जाने वाले जगमीत सिंह अब खुद अपनी राजनीतिक ज़मीन खो बैठे हैं। कनाडा के हालिया संसदीय चुनावों में न केवल जगमीत सिंह अपनी सीट हार गए, बल्कि उनकी पार्टी नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) भी बुरी तरह से पराजित हो गई है।
जहां पिछली बार हाउस ऑफ कॉमन्स में एनडीपी को 24 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार यह संख्या घटकर सिर्फ 7 पर सिमटने की आशंका है। खबर लिखे जाने तक एनडीपी ने केवल 4 सीटें जीती थीं और 3 पर मामूली बढ़त बनाए हुए थी।
ब्रिटिश कोलंबिया के बर्नबी सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे सिंह इस बार तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें लिबरल पार्टी और कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवारों ने पीछे छोड़ दिया।
जगमीत सिंह ने हार के बाद कहा:
> “मैं निराश हूं कि हम और सीटें नहीं जीत पाए, लेकिन अपने आंदोलन से नहीं।”
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि जैसे ही पार्टी नया नेता चुनेगी, वे एनडीपी का नेतृत्व छोड़ देंगे।
भारत विरोधी एजेंडे पर सवाल:
जगमीत सिंह को लंबे समय से भारत विरोधी रुख के लिए जाना जाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर लगातार दबाव बनाकर भारत पर आरोप लगाने और खालिस्तानी तत्वों का समर्थन करने की नीति अपनाई थी।
पिछले वर्ष सिंह ने भारत पर प्रतिबंध लगाने, भारतीय राजनयिकों के निष्कासन की मांग करने और भारत को खालिस्तान आंदोलन के लिए जिम्मेदार ठहराने जैसे कई विवादित बयान दिए थे।
हिंदू मंदिरों पर हमले और भारत को दोष:
ब्रैम्पटन में एक हिंदू मंदिर पर हुए खालिस्तानी हमले के बाद भी सिंह ने भारत को ही जिम्मेदार ठहराया, जबकि साक्ष्य इसके उलट थे। उन्होंने ट्रूडो सरकार से भारत के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की अपील की थी, जिसे आंशिक रूप से लागू भी किया गया।
जनता का करारा जवाब:
इस बार के चुनावों में कनाडा की जनता ने खालिस्तान समर्थकों को पूरी तरह नकार दिया है। सिंह और उनकी पार्टी की हार को सिर्फ राजनीतिक असफलता नहीं, बल्कि कनाडा की बहुसांस्कृतिक जनता की एक स्पष्ट चेतावनी माना जा रहा है कि चरमपंथ और भारत विरोध जैसे मुद्दों की राजनीति अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
जगमीत सिंह की हार सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, खालिस्तान एजेंडे की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विफलता की कहानी है। भारत विरोधी नीति और चरमपंथ को बढ़ावा देने वाले नेताओं के लिए यह चुनाव एक स्पष्ट जनादेश है—अब बहुत हुआ।
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