नक्सली बसवराजू का मारा जाना मोदी सरकार की टॉप प्रायोरिटी में क्यों था? पढ़िए

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ जंगलों में इतिहास रचा गया।
क्यूंकि यहां भारतीय सुरक्षा बलों ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी वर्षों तक एक सपना लगती थी। दुनिया के सबसे खतरनाक गुरिल्ला युद्ध क्षेत्रों में गिने जाने वाले अबूझमाड़ में एक मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों ने 27 खूंखार नक्सलियों को ढेर कर दिया, जिनमें सबसे बड़ा नाम था — नंबाल्ला केशव राव उर्फ बसवराजू।
अब यहां पर एक सवाल निकल कर सामने आता है कि आखिरकार कौन था बसवराजू?
तो आपको बताते चलें कि बसवराजू सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि नक्सली नेटवर्क की रीढ़ था।
वह भाकपा (माओवादी) का महासचिव था – देश के सबसे हिंसक प्रतिबंधित संगठन का शीर्ष नेता।
70 वर्षीय यह खूंखार आतंकी आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम का रहने वाला था और वारंगल के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ा था।
कॉलेज जीवन से ही कट्टर वामपंथी विचारधारा का पोषक बना और ‘रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन’ के तहत छात्र संघ का अध्यक्ष बना।
और 1985 से वह भूमिगत हो गया और पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) का सदस्य बन गया। 2004 में जब PWG और MCC का विलय हुआ, तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन हुआ और इस नई पार्टी में वह शीर्ष स्तर पर पहुंच गया।
क्यूंकि बसवराजू की भूमिका सिर्फ एक कमांडर की नहीं थी — वह दक्षिण और उत्तर के कैडरों के बीच पुल था, रणनीतिकार था और माओवादी छापामार सेना का कमांडर-इन-चीफ भी। और उसकी मौत ने माओवादियों की रणनीतिक संरचना को एक ऐसा झटका दिया है जिससे उबरना लगभग नामुमकिन माना जा रहा है।
22 मई की सुबह अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षा बलों ने एक गुप्त ऑपरेशन के तहत माओवादियों के बड़े जमावड़े को घेर लिया। मुठभेड़ में मारे गए 27 नक्सलियों के शव बरामद किए गए, और इनमें सबसे बड़ा नाम था — 1.5 करोड़ के इनामी बसवराजू।
इसके साथ ही गृह मंत्री अमित शाह ने स्वयं इसकी पुष्टि की और इसे "नक्सलवाद पर सबसे बड़ा प्रहार" बताया। उन्होंने यह भी कहा कि, "पिछले तीन दशकों में यह पहली बार है जब सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के महासचिव स्तर के किसी नेता को मार गिराया है।"
क्यूंकि बसवराजू की मौत सिर्फ एक आतंकवादी की मौत नहीं है, बल्कि यह उस विचारधारा का अंत है जो दशकों से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बनी हुई थी। और यह एक स्पष्ट संकेत है कि अब नक्सलवाद के दिन गिनती के रह गए हैं।
क्यूंकि यह सफलता सुरक्षाबलों के साथ-साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय की स्पष्ट नीति, मजबूत नेतृत्व और "नक्सल मुक्त भारत" के संकल्प का प्रतिफल है। और अमित शाह के नेतृत्व में जो सुरक्षा नीति अपनाई गई, उसने नक्सली नेटवर्क को जड़ से हिलाकर रख दिया है।
और सच्चाई तो यही है बसवराजू के मारे जाने से नक्सली संगठन अब समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुका है, क्यूंकि अब उनके पास नेतृत्व नहीं है, दिशा नहीं है और अगर कुछ है तो वह है सिर्फ सरकार का डर
और जाहिर सी बात हैं की बसवराजू का खात्मा एक ऐतिहासिक उपलब्धि है — एक ऐसा मोड़ जो "नक्सल मुक्त भारत" के सपने को वास्तविकता में बदलने का संकेत है।क्यूंकि यह सिर्फ एक एनकाउंटर नहीं था, बल्कि यह था एक विचारधारा का अंत... और जिसका श्रेय जाता है गृहमंत्री अमित शाह को
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