पाकिस्तान का खूनी चेहरा: बलूचिस्तान में इंसानियत की कब्रगाह

पाकिस्तान दुनिया के सामने खुद को लोकतांत्रिक और सभ्य राष्ट्र बताने की कोशिश करता है, लेकिन बलूचिस्तान में उसकी असलियत खुलकर सामने आती है—जहाँ लोगों को अगवा कर टॉर्चर किया जाता है, लाशों को पहाड़ियों में फेंक दिया जाता है, और फिर उसे "राष्ट्रीय सुरक्षा" का नाम दे दिया जाता है। हाल ही में 29 शवों की बरामदगी ने पाकिस्तान की 'किल एंड डंप' नीति को एक बार फिर बेनकाब कर दिया है। यह न केवल मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है, बल्कि एक सुनियोजित नस्लीय सफाया भी है।
पाकिस्तानी सेना और ISI: बलूच नरसंहार के गुनहगार
पाकिस्तान की सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी ISI पर वर्षों से आरोप लगते आ रहे हैं कि वे बलूच कार्यकर्ताओं, छात्रों, पत्रकारों और यहां तक कि स्कूल के बच्चों को भी अगवा करके गायब कर देते हैं। ये लोग या तो जेलों में अमानवीय यातनाएं झेलते हैं या फिर उनकी लाशें किसी रेगिस्तानी इलाके से बरामद होती हैं। और इन सबका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड तक नहीं होता। क्या यही एक "जिम्मेदार" राष्ट्र की पहचान है?
राज्य प्रायोजित आतंकवाद अपने ही नागरिकों पर
पाकिस्तान जिसे दुनिया भर में आतंकवाद का निर्यातक माना जाता है, वह खुद अपने देश के अंदर भी "राज्य प्रायोजित आतंकवाद" चला रहा है। बलूचिस्तान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वहाँ न तो बोलने की आज़ादी है, न प्रदर्शन की, और न ही न्याय की कोई गारंटी। एक आवाज़ उठी नहीं कि अगवा कर ली जाती है।
CPEC: बलूच खून पर चीन-पाक की साझेदारी
चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC), जो बलूच भूमि से होकर गुजरता है, वहाँ के स्थानीय लोगों के लिए विकास नहीं, बल्कि विनाश लाया है। जिन गांवों और ज़मीनों पर सड़कें और बंदरगाह बने, वहाँ के लोगों को विस्थापित कर दिया गया, बिना मुआवज़े के। विरोध करने वालों को या तो जेल में डाल दिया गया या मार कर दफना दिया गया। पाकिस्तान बलूचिस्तान को एक उपनिवेश की तरह चलाता है—जहाँ संसाधन तो निकाले जाते हैं, पर अधिकार नहीं दिए जाते।
बलूचों की आवाज़ दबाई, आतंकियों को सराहा
दुनिया को यह समझना होगा कि पाकिस्तान का दोहरा चरित्र कितना खतरनाक है—एक ओर वह बलूच छात्रों और कार्यकर्ताओं को आतंकवादी बताकर मारता है, दूसरी ओर लश्कर-ए-तैयबा और तालिबान जैसे संगठनों को खुलेआम संरक्षण देता है। जब एक देश अपने ही नागरिकों से दुश्मनों जैसा व्यवहार करे, तो क्या उसे एक लोकतांत्रिक देश कहा जा सकता है?
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शर्मनाक चुप्पी
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देश—जो हर बात पर भाषण देते हैं—बलूच नरसंहार पर चुप्पी साधे बैठे हैं। क्या इसलिए क्योंकि बलूच मुसलमान हैं और उनका हत्यारा भी एक मुस्लिम राष्ट्र है? क्या मानवाधिकारों का मापदंड जाति, धर्म और भूगोल देखकर तय किया जाता है?
पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराना होगा
अब वक्त आ गया है कि दुनिया पाकिस्तान से सवाल पूछे—बलूचिस्तान में हो रहे अत्याचारों पर अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग करे, पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाए, और बलूच जनता को अपनी बात कहने का अधिकार दे। अगर दुनिया चुप रही, तो यह चुप्पी एक दिन मानवता पर सबसे बड़ा कलंक बनकर सामने आएगी।
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