Exclusive Report.. झारखण्ड में अगले 5 वर्षों में मुसलमानों की संख्या आदिवासियों से ज्यादा हो जाएगी I

Nov 11, 2024 - 17:05
Dec 19, 2024 - 13:12
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Exclusive Report.. झारखण्ड में अगले 5 वर्षों में मुसलमानों की संख्या  आदिवासियों से ज्यादा हो जाएगी I

जिस झारखण्ड की पहचान जल-जंगल-जमीन से हैं जिस झारखण्ड में माटी-बेटी और रोटी को स्वाभिमान का प्रतीक माना जाता हैं 

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अगले 5 साल में वहीं झारखंड शायद मुस्लिम प्रधान राज्य बन जाएगा, क्यूंकि एक बहुत ही सोची समझी पैटर्न के तहत आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड का इस्लामीकरण किया जा रहा है, अब चाहे वो जनजातीय बहन-बेटियों को लव जिहाद के चंगुल में फंसा कर उनका कन्वर्जन करवाना हो या फिर लैंड जिहाद के नाम पर भोले-भाले मासूम आदिवासियों के जमीन पर जबरदस्ती कब्जा जमाना हो, इन जिहादियों ने झारखंड में जिहाद का ऐसा तांडव मचाया है कि आज के समय में भगवान बिरसा मुंडा के पावन धरती पर आदिवासियों के अस्तित्व का नामो-निशान ही समाप्त होने को है, आपको बताते चले की आज से ठीक 24 साल पहले, साल था 2000 और तारीख थी 15 नवंबर जब बिहार को दो हिस्से में बांटा गया तथा आदिवासियों एवं जनजातियों के अधिकार के नाम पर एक अलग राज्य झारखंड का निर्माण किया गया. लेकिन उसी झारखंड में आदिवासी और जनजातीय प्रजाति यानि की वहां के मूल निवासी ही आज वहां अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं क्योंकि एक सुनियोजित तरीके से अवैध बांग्लादेशी रोहिंग्या मुसलमानों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए झारखण्ड में बसाया जा रहा है 


झारखंड के पांच प्रमंडल में 24 जिले हैं, और पिछले कुछ समय में यह देखा गया है कि इन सभी जिलों में मुसलमानों की आबादी बहुत तेजी से बड़ी है, खासकर संथाल परगना के साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, गोड्डा, जामताड़ा, सहित गुमला,कोडरमा, चतरा,बोकारो, रांची, मधुपुर और धनबाद के कुछ इलाकों में भी मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी हुई हैं..

झारखंड में जब साल 1951 में जब पहली बार जनगणना कराई गई थी, उस वक्त संथाल परगना के जिलों में आदिवासियों की आबादी 44.67 प्रतिशत थी. 

जिसमे मात्र 9.44 प्रतिशत मुसलमान थे. और 45.9 प्रतिशत आबादी दलित, ओबीसी और सवर्ण समाज की थी. 1971 में इस आंकड़ों में बढ़ोतरी देखी गई. साल 1971 में आदिवासियों की संख्या में गिरावट हुई और इस साल संथाल परगना में आदिवासी 44.67 से 36.22 प्रतिशत हो गए. मुसलमान 9.44 से बढ़कर 14.62 प्रतिशत हो गए.

1981 के जनगणना में आदिवासियों की आबादी में मामूली बढ़त देखी गई. इस साल के जनगणना के मुताबिक यहां पर आदिवासियों की संख्या 36.80 प्रतिशत थी. वहीं मुसलमानों की संख्या में करीब 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.

साल 2011 के जणगणना के मुताबिक संथाल परगना में आदिवासी आबादी घटकर करीब 28 प्रतिशत पर पहुंच गए. वहीं मुसलमानों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई. मुसलमान की आबादी यहां पर बढ़कर 22.73 प्रतिशत पर पहुंच गए. और आपको बताते चलूं की यह सभी आंकड़े 2011 से पहले के हैं.यानि की अभी से लगभग 13 साल पहले अगर सरकारी आंकड़ों में मुसलमानों की आबादी में इतनी बढ़ोतरी देखी गई है, तो फिर सोचने वाली बात तो यह हैं की अभी के वर्तमान परिपेक्ष में, जब सत्ता और शासन बिल्कुल ही निरंकुश हो चुकी है तब इन जिहादियों की वास्तविक संख्या क्या होगी और इसके साथ ही आदिवासी बहुल क्षेत्र में जानबूझकर बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा आदिवासी कल्चर को खत्म करने का काम किया जा रहा है.और मूल निवासियों के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है एवं साथ ही साथ ये भी सुनने को मिल रहा है कि इन घुसपैठियों के द्वारा स्थानीय जनजातीय निवासी एवं महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार किया जा रहा है, संथाल परगना के आदिवासी बाहुल क्षेत्र में आदिवासियों के पूजा अर्चना की जगह को जबरदस्ती घेर कर अल्पसंख्यकों के द्वारा कब्रिस्तान बना दिया गया और बाकायदा इसमें सरकारी तंत्र के द्वारा भी उनको सपोर्ट किया गया और इतने गंभीर मुद्दे पर भी खुद को असली आदिवासी हितैषी सरकार बताने वाली हेमंत सरकार ने भी अगर चुप्पी साध रखी है तो जाहिर सी बात है कि हेमंत सोरेन को और उनके सहयोगी दलों के नेताओं को आदिवासियों की नहीं बल्कि अवैध रोहिंग्या मुसलमानों की चिंता है

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि.. आदिवासियों को अपनी रोटी,बेटी और माटी को बचाने के लिए खुद ही संघर्ष का रास्ता चुनना पड़ रहा है. क्योंकि सरकारी तंत्र और शासन को तो सिर्फ अपने वोट बैंक के चिंता है.

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