भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की नई उड़ान
भारत ने हमेशा ही तकनीकी क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित की है, फिर चाहे वह अंतरिक्ष कार्यक्रम हो या रक्षा क्षेत्र। अब भारत ने एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया है – जेट इंजन के निर्माण में आत्मनिर्भर बनने का। जिस तरह इसरो ने क्रायोजेनिक इंजन विकसित कर भारत को तकनीकी महाशक्ति बनाया, ठीक वैसे ही भारत अब जेट इंजन निर्माण में भी वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाने की तैयारी कर रहा है।
क्रायोजेनिक इंजन: आत्मनिर्भरता की पहली सफलता
1990 के दशक में जब भारत को GSLV (भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान) के लिए क्रायोजेनिक इंजन की आवश्यकता पड़ी, तब अमेरिका ने इस तकनीक को भारत तक पहुंचने से रोक दिया। लेकिन इसरो ने हार नहीं मानी और कठिन परिश्रम से स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन विकसित किया।
स्वदेशी जेट इंजन: भारत की नई चुनौती
अब भारत ने तय कर लिया है कि वह जेट इंजन के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनेगा। 2021 में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने अमेरिकी कंपनी GE से 99 जेट इंजनों की आपूर्ति के लिए करार किया था, लेकिन इनकी डिलीवरी में देरी हुई। इसी कारण भारत अब स्वदेशी जेट इंजन निर्माण की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा रहा है।
इस आत्मनिर्भरता के फायदे:
✅ रक्षा क्षेत्र में मजबूती: भारत के लड़ाकू विमानों के लिए स्वदेशी जेट इंजन रक्षा क्षेत्र को और सशक्त बनाएगा।
✅ तकनीकी उन्नति: भारत की वैज्ञानिक क्षमता और रिसर्च सेक्टर को नई ऊंचाइयां मिलेंगी।
✅ आर्थिक लाभ: स्वदेशी निर्माण से विदेशी निर्भरता कम होगी और घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
✅ वैश्विक पहचान: भारत जेट इंजन निर्माण में दुनिया के अग्रणी देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।
जिस तरह भारत ने क्रायोजेनिक इंजन के क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता साबित की, अब वही कहानी जेट इंजन निर्माण में भी दोहराई जा रही है। यह कदम 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' के लक्ष्यों को और मजबूत करेगा। भारत की इस नई उड़ान का पूरा विश्व इंतजार कर रहा है!