भजन गायक तानसेन जोकि कभी मुस्लिम नहीं बने..फिर क्यों कहा गया उन्हें "मियां"?
कम्युनिस्ट एजेंडे के तहत इतिहास को तोड़ मरोड़ कर जिस तरह से पेश किया गया है इस एजेंट को बेनकाब करने के लिए यह सच्चा लेख लिखा गया है

जिस तरीके से पूरी भारतीय संस्कृति व धर्म को कम्युनिस्ट शासन में तोड़ मरोड़ कर टेक्स्ट बुक की किताबों में पेश किया गया इस कड़ी में एक प्रसिद्ध और चर्चित नाम रहा है गायक तानसेन का .. जिनके नाम के आगे "मियां" लगाकर उनके व्यक्तित्व के पूरे कॉन्टेक्स्ट को ही चेंज कर दिया गया...
सूर्योदय पूर्व स्नान , सूर्य नमस्कार, भजन पूजन आदि हिंदू जीवन परंपरा में पले बढ़े गायक तानसेन रीवा के राजा रामचंद्र के दरबारी गायक थे, राजा रामचंद्र की रियासत पर आक्रमण के बाद अकबर ने उनसे संधि की थी और उस संधि में ही अकबर ने तानसेन को भी मांग लिया था.. जब तानसेन ने दृढ़ता पूर्वक अकबर के दरबार में जाने से साफ इनकार किया तो अकबर ने एक इस्लामी सेना भेज कर रीवा से तानसेन को बंदी बनाकर अपने दरबार में बुला लिया।
उस दिन से धीरे-धीरे तानसेन का पवित्र हिंदू जीवन समाप्त होने लगा दरबार में गाते समय तान लेने के लिए जब तानसेन का मुख खुलता था कोई "वाह मियां" कहकर उनके मुंह में पान ठूंस दिया करता था और यह इस्लामी दरबार की प्रथा थी किंतु तानसेन क्या कर पाते बेचारे..
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस तानसेन के नाम के आगे बलपूर्वक मियां लगा दिया गया और इस दरबारी नाम को हिंदुस्तान के इतिहासकारों ने तमाम टेक्स्ट बुक में पेश किया जबकि तानसेन का पवित्र हिंदू जीवन कभी भी प्रचारित नहीं किया गया.. तानसेन अपने जीवन में कभी मुसलमान नहीं बने अंत तक वह सिर्फ हिंदू ही रहे।
तानसेन की जब मृत्यु हुई तो हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक ही उनका अग्नि संस्कार किया गया और जो उनकी कब्र की बातें बताई गई है वह सब झूठी हैं। जिस इस्लाम का संगीत से कोई मतलब नहीं है उस इस्लाम के नाम मियां को भजन गायक तानसेन के ऊपर जबरन थोप दिया गया और आज इस तानसेन को हिंदुस्तान के किशोर युवा मियां तानसेन के नाम से जानते हैं क्योंकि भारत के इतिहास में वही बताया और परोसा गया है जो कि एजेंडे के तहत था रचा गया.
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