रोंगटे खड़े हो जाएंगे...वीर सम्भाजी महाराज पर किये थे औरंगजेब ने ये अत्याचार

11 मार्च 1689—यह वह दिन था जब भारत के महान योद्धा, हिंदवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति संभाजी महाराज ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन स्वाभिमानी संभाजी महाराज ने अपने प्राण तो न्यौछावर कर दिए, परंतु धर्म और मातृभूमि से समझौता नहीं किया। उनके बलिदान की गाथा इतिहास में अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष और अडिग निष्ठा का प्रतीक बनी हुई है।
संभाजी महाराज: एक पराक्रमी योद्धा
संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे और अपने पिता की ही तरह कुशल योद्धा, रणनीतिकार और निर्भीक शासक थे। उन्होंने हिंदवी स्वराज्य को मज़बूत करने के लिए अनगिनत युद्ध लड़े और मुगलों, पुर्तगालियों और अन्य विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया।
उनकी वीरता और युद्ध कौशल के कारण मुगलों को कई बार पराजय का सामना करना पड़ा। औरंगज़ेब के लिए संभाजी महाराज सबसे बड़े विरोधी थे, इसलिए उसने छल से उन्हें बंदी बनाने की साजिश रची।
बंदी बनाकर दिया गया अमानवीय यातना
फरवरी 1689 में, संभाजी महाराज को उनके एक विश्वासघाती सरदार के कारण मुगलों ने धोखे से कैद कर लिया। औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा, लेकिन संभाजी महाराज ने गर्व से इंकार कर दिया। इसके बाद उन पर अमानवीय अत्याचार किए गए—
उनकी जीभ काट दी गई ताकि वे अपने स्वराज्य की महिमा का गुणगान न कर सकें।
उनकी आँखें फोड़ दी गईं ताकि वे अपने स्वप्नों का भविष्य न देख सकें।
नाखून उखाड़े गए, शरीर पर भयानक घाव किए गए।
अंत में उनका सिर काटकर कुत्तों को खिलाया गया।
लेकिन इन भयानक यातनाओं के बावजूद, संभाजी महाराज ने एक पल के लिए भी घुटने नहीं टेके और वीरगति को प्राप्त हुए।
संभाजी महाराज का बलिदान: हिंदवी स्वराज्य की ज्वाला
संभाजी महाराज के बलिदान से पूरा मराठा साम्राज्य हिल गया, लेकिन इससे मराठों का हौसला और भी बढ़ा। उनके बलिदान के बाद मराठाओं ने संगठित होकर औरंगज़ेब के खिलाफ भीषण युद्ध छेड़ दिया, जो उसकी हार और मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना।
संभाजी महाराज का बलिदान हमें धर्म, सत्य और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। वे केवल एक शासक नहीं थे, बल्कि मराठा वीरता और हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक थे।
संभाजी महाराज को नमन
आज, 11 मार्च को हम छत्रपति संभाजी महाराज की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन करते हैं। उनका बलिदान सदा अमर रहेगा और हमें याद दिलाता रहेगा कि सच्चे योद्धा अपने प्राण दे सकते हैं, लेकिन अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं करते।
जय भवानी! जय शिवाजी! जय संभाजी महाराज!
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