दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल एक बार फिर चर्चा में हैं। दिल्ली चुनावों में करारी हार के बाद अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे केजरीवाल ने अब खुद की तुलना शहीद भगत सिंह से कर दी है। सवाल यह उठता है कि क्या यह सच्ची श्रद्धांजलि है या अपनी विफलताओं को छिपाने का नया हथकंडा?
भगत सिंह और केजरीवाल – कोई तुलना नहीं!
भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए लड़े, फांसी के फंदे को गले लगाया, और किसी पद या सत्ता की लालसा नहीं रखी। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने से पहले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का सहारा लिया, फिर उसी राजनीति में गहरे धंसते चले गए। भगत सिंह ने कभी अपने लिए प्रचार नहीं किया, जबकि केजरीवाल अपनी हर बात को ‘शहीदी’ रंग देने में लगे रहते हैं।
भाजपा को ‘अंग्रेजों से भी बदतर’ कहना – हताशा का प्रतीक
केजरीवाल ने भाजपा सरकार की तुलना अंग्रेजों से कर दी, लेकिन क्या वे भूल गए कि इसी सरकार के अधीन उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाला था? अगर भाजपा इतनी ही दमनकारी थी, तो वे सत्ता में रहते हुए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा सके?
तस्वीरों की राजनीति – असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास
केजरीवाल का दावा है कि भाजपा सरकार ने सरकारी कार्यालयों से भगत सिंह और डॉ. अंबेडकर की तस्वीरें हटवा दीं। लेकिन क्या उनके पास इसका कोई प्रमाण है? यह वही रणनीति है जो वे पहले भी अपनाते रहे हैं—बिना प्रमाण आरोप लगाकर सहानुभूति बटोरना।
महिला मुफ्त यात्रा योजना पर झूठ?
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा नहीं करने दे रही। लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा सरकार बस यात्रा को अधिक व्यवस्थित और डिजिटल करने की दिशा में काम कर रही है। मुफ्त यात्रा जारी है, लेकिन इसे ऐप-आधारित ट्रैकिंग से जोड़ा गया है। क्या डिजिटल व्यवस्था से डरकर केजरीवाल जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं?
हार के बाद भावनात्मक खेल
केजरीवाल ने हार स्वीकार करने के बजाय सहानुभूति बटोरने का रास्ता चुना। जेल जाने को उन्होंने भगत सिंह की जेल यात्रा से जोड़ दिया, लेकिन वे यह भूल गए कि भगत सिंह देश के लिए जेल गए थे, न कि भ्रष्टाचार के आरोपों में।
अरविंद केजरीवाल की भगत सिंह से तुलना सिर्फ हताशा और सस्ती लोकप्रियता पाने का प्रयास है। जब जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर किया, तो अब वे सहानुभूति कार्ड खेलकर फिर से वापसी की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली की जनता अब समझ चुकी है कि असली भगत सिंह कौन थे और नकली क्रांतिकारी कौन!