"कानूनी शिक्षा का भारतीयकरण: न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की प्रेरणादायी पुकार"

Apr 15, 2025 - 15:11
Apr 15, 2025 - 15:12
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"कानूनी शिक्षा का भारतीयकरण: न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की प्रेरणादायी पुकार"

नई दिल्ली, 15 अप्रैल 2025
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने एक साहसिक और समयोचित पहल करते हुए देश की कानूनी शिक्षा में “भारतीयकरण” की मांग की है। उन्होंने कहा कि अब आवश्यकता है कि हम पश्चिमी ढांचे से हटकर भारतीय परंपराओं और दर्शन पर आधारित न्याय प्रणाली को शिक्षा का हिस्सा बनाएं।

वेदों और महाभारत में छिपा है न्याय का असली मर्म
न्यायमूर्ति मित्तल का मानना है कि भारतीय ग्रंथ – जैसे वेद, स्मृतियां, रामायण, महाभारत और अर्थशास्त्र – केवल धार्मिक या ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि उनमें न्याय, नीति, कर्तव्य और शासन की गहराई से व्याख्या की गई है।

उनके अनुसार, “संविधान आधुनिक है, लेकिन न्याय की भारतीय दृष्टि हजारों वर्षों पुरानी है। जब हम वेदों या महाभारत को पढ़ते हैं, तो हमें एक ऐसी परिभाषा मिलती है जो आज भी प्रासंगिक है – न्याय केवल दंड नहीं, बल्कि सुधार और संतुलन है।”

पश्चिमी प्रभाव से मुक्ति की जरूरत
उन्होंने कहा कि वर्तमान कानून की पढ़ाई अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता से प्रभावित है। छात्र केवल एक्ट्स और केस लॉ पढ़ते हैं, लेकिन नैतिकता, कर्तव्य और न्याय की भारतीय अवधारणा से अपरिचित रहते हैं।

प्राचीन न्याय-व्यवस्था की पुनर्पहचान
न्यायमूर्ति मित्तल ने कहा कि हमें मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, कौटिल्य के अर्थशास्त्र और रामराज्य जैसे सिद्धांतों को फिर से समझने और शिक्षा में शामिल करने की आवश्यकता है, जिससे आने वाली पीढ़ियां न्याय को केवल कानून की धाराओं से नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों और कर्तव्यों से समझ सकें।

प्रस्तावित सुधार:

कानून के पाठ्यक्रम में भारतीय ग्रंथों पर आधारित विषय जोड़े जाएं।

न्यायिक प्रशिक्षण में भारतीय न्याय-दर्शन पर शोध और व्याख्यान हों।

छात्रों को नैतिकता, कर्तव्य और समाज-निर्माण की भारतीय दृष्टि सिखाई जाए।

“यह भारत का समय है”
अपने प्रेरणास्पद भाषण का समापन करते हुए उन्होंने कहा,
“अगर हम अपनी कानूनी शिक्षा को भारतीय रंग नहीं देंगे, तो हम अपनी न्यायिक आत्मा को खो देंगे।”

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