मनुस्मृति पर शोर के बीच सैटेनिक वर्सेज किताब पर खामोशी...मौलाना मौलवी दे रहे धमकियां

सलमान रुश्दी की किताब "सैटेनिक वर्सेज" एक बार फिर चर्चा में है..सलमान रुश्दी का चर्चित उपन्यास 1988 में प्रकाशित हुआ था और किताब छपने के 1 महीने के भीतर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। 36 साल बाद प्रतिबंधित हुई इस किताब की भारत में फिर बिक्री शुरू हो गई है और जनता में इस किताब को लेकर गजब का उत्साह है...कई बुक शॉप पर इस किताब का स्टॉक खत्म हो गया है..दिल्ली एनसीआर में बाहरीसंस बुक पर ये किताब उपलब्ध है और किताब को लेकर पाठकों में जमकर उत्साह है। स्टोर्स पर इस किताब की कीमत 1999 रूपये है।
गौरतलब है कि मुस्लिम संगठनों ने इस किताब की सामग्री पर एतराज जताया था, ईरानी नेता खुमैनी ने मुसलमानों से रुश्दी और उनके प्रकाशकों को मारने के लिए फतवा जारी किया था..रुश्दी ने लगभग दस साल ब्रिटेन और अमेरिका में छिपकर बिताए थे..2022 को लेबनानी अमेरिकी हादी मतार ने एक प्रोग्राम में रुश्दी को चाकू मार दिया था..जिससे उनकी एक आंख की रौशनी चली गई थी।
एक बार फिर किताब की बिक्री को लेकर मुस्लिम संगठन भड़क गए हैं और सरकार को चेतावनी दे रहे हैं...मुस्लिम धर्मगुरु तो यहां तक कह रहे हैं कि मुस्लिमों को अल्लाह जान से प्यारा है..ऐसे में वे सैटेनिक वर्सिज को बर्दाश्त नहीं करेंगे..बुकसेलर्स ने अपने स्टोर पर दिल्ली एनसीआर में इस किताब का सीमित स्टॉक उपलब्ध होने का दावा किया है। जमीयत ने धमकी दी है कि किताब पर सरकार ने प्रतिबंध नहीं लगाया तो मुसलमान समाज चुप नहीं बैठेगा..जबकि दूसरी तरफ भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने वाले तमाम बुद्धिजीवी किताब की बिक्री को लेकर दिए जा रहे तमाम नफरती बयानों के बावजूद चुप हैं जबकि आय दिन मनुस्मृति को लेकर बहस दिख रही है जबकि सैटेनिक वर्सेज को लेकर सब जगह मौन है।
मनुस्मृति जल रही है, उसपर तमाम मीडिया में बहस हो रही है मगर सैटेनिक वर्सेज पर कोई बात नहीं हो रही, मौलानाओं की धमकी पर कोई एक शब्द नहीं बोल रहा है।
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