नक्सलियों के मंसूबों पर अमित शाह ने फेरा पानी

2050 तक माओवादी इस देश में कब्जा करने का प्लान बैठे किए है, लेकिन साल 2014 के बाद गृह मंत्री अमित शाह की नक्सवलवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति की वजह से कांग्रेसी सरकार में चरम पर पहुँच चुकी नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है I
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों को प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व ने अंधकार की जगह संवैधानिक अधिकार, हिंसा की जगह विकास, जीरो टॉलरेंस की नीति और जनकल्याण की योजनाओं की शत प्रतिशत पहुँच दिखाकर पॉलिटिक्स ऑफ़ परफॉर्मेस का सबूत दिखाया है जो इस नक्सलवाद से लड़ने में सबसे बड़ा हथियार साबित हुई I जो नक्सलवाद कांग्रेस सरकार के दौरान एक राष्ट्रीय समस्या थी वो मोदी सरकार के दस साल में ही सिर्फ़ छत्तीसगढ़ और कुछ राज्यों तक सिमट कर रह गया हैI
कांग्रेस की सरकारों ने अलग अलग समय में इन सभी आदिवासी क्षेत्रों में रह लोगों के दिमाग़ में सरकार और अपने ही समाज के प्रति नफ़रती बारूद भर रखा था और उनके हाथ में बग़ावत की ऐसी डोर बाँध रखी थी जो अपने ही देश में अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ हथियार उठाया करते थेI
1947 के बाद एक तरफ़ करोड़ो भारतीय आजाद भारत को आधुनिक विकास और प्रगति के रास्ते पर ले जाना चाहते थे वही दूसरी तरफ़ अंग्रेजी मानसिकता से पीड़ित कांग्रेस पार्टी अपनी तिजोरी भरने और विदेशी ताकतों के अधूरे सपने को पूरा करने में लग गई I कांग्रेस पार्टी ने आजाद भारत में नीतियां ही ऐसी बनाई जिससे देश के कई इलाके विकास से दूर रह सके ताकि विदेशी ताकतें अपना एजेंडा चला सके I
आम जनता को सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान, सड़क, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं में तड़पा कर स्टेट के ख़िलाफ़ भड़काया गया और फिर उसे एक आंदोलन का रूप दे दिया गया I जब देश में एक बड़ा तबका बागी होने लगा था तब उनको राजनीतिक संरक्षण देकर देश के कई इलाक़ों में दंगे कराए गए, आत्म रक्षा और अपने हक की लड़ाई बताकर पूरी दुनिया में सुर्खिया बटोरी गई और बहुत बड़ी मात्रा में फण्ड इक्कठा किया गयाI
जबकि भाजपा सरकार में सुरक्षा बलों को खुली छूट दी गई कि वो माओवादियों के गढ़ में घुसकर नक्सलियों की चौतरफा घेराबंदी करे जिससे उनके पास विकल्प केवल शांति वार्ता का बचे I ऐसे अभियान का नतीजा रहा कि कई नक्सली नेता या तो मारे गए या उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया I
गृह मंत्री अमित शाह ने ऐसी नक्सल इलाकों में शांति स्थापित करने के लिए ऑपरेशन ‘SAMADHAN ’ चला रही है I गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 7 अगस्त को नक्सलवाद या वामपंथी उग्रवाद से जुड़े कुछ आंकड़े संसद में रखे थे. जितने नक्सली हमले साल 2010 में हुए और जितने नक्सली हमले साल 2024 में हुए इनकी तुलना करने पर पता चलता है कि 2014-20024 तक इन हमलों में 73% की कमी आई और हमलों में हुई मौतों की संख्या में 86% तक कमी आई I अगर इन आंकड़ों के नंबर में समझे तो साल 2010 में नक्सली घटनाओं में 1,005 मौतें हुई थीं, जबकि 2023 में 138 लोगों की मौत हुई थी I
2013 तक देशभर के 10 राज्यों के 126 जिले नक्सल प्रभावित थे जो अप्रैल 2024 तक 9 राज्यों के 38 जिलों तक ही नक्सलवाद सिमट कर रह गया.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2010 तक 96 जिलों के 465 पुलिस थानों तक नक्सलवाद फैला हुआ था. 2023 के आखिर तक ये 42 जिलों के 171 पुलिस थानों तक सिमट गया. वहीं, जून 2024 तक देश के 30 जिलों के 89 पुलिस थाने ही ऐसे हैं, जहां नक्सलवाद फैला हुआ है.
कुछ साल पहले तक झारखंड के दर्जनभर से ज्यादा जिले नक्सलियों का गढ़ हुआ करते थे, लेकिन अब वो 5 जिलों तक सिमट गए हैं. झारखंड के गिरिडिह, गुमला, लतेहार, लोहारदगा और पश्चिमी सिंघभूम तक नक्सली बचे हैं. बात अगर बिहार की करे तो 2018 में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 16 थी, अब वो घट कर सिर्फ़ 8 रह गई है पश्चिम बंगाल में एक, छतीसगढ़ में 15, तेलंगाना में दो, महाराष्ट्र में दो, मध्य प्रदेश में दो , आंध्र प्रदेश में एक और केरल में दो नक्सल प्रभावित इलाके रह गए है I
Read more: अमित शाह का Rule 3C: जिससे खत्म होने की कगार पर नक्सलवाद
What's Your Reaction?






