क्या है अमित शाह का Rule 3C जिससे नेस्तनाबूद हो रहा नक्सलवाद

Dec 3, 2024 - 16:28
Dec 19, 2024 - 13:08
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क्या है अमित शाह का Rule 3C जिससे नेस्तनाबूद हो रहा नक्सलवाद

24 अगस्त को हुई बैठक के बाद अमित शाह ने बताया था कि 2019 से अब तक नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ के 277 कैंप लगाए गए हैं. इनके अलावा ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियां माओवादियों की फंडिंग खत्म करने के लिए ऑपरेशन चला रही हैं.

इसमें से कुछ इलाकों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बताकर विकास से दूर रखा गया, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कई गुण्डों और माफियाओं को पनपने दिया गया जिससे विकास ही न हो I  जब कांग्रेस का केंद्र और राज्यों में शासन था तब सरकारी संरक्षण दे कर नक्सलवाद के आतंक को पनपाया गयाI  एक तरफ़ चंबल में डकैतों से लेकर जम्मू-कश्मीर में पाक परस्त और देश के कुछ राज्यों में नक्सली को बसाने का काम किया गया तो दूसरी तरफ़ बंगाल जैसे राज्य में कम्युनिस्ट सरकार ने मजदूर भाइयों को भी हड़ताल और आंदोलन में फंसा कर देश के बड़े उद्योगपतियों के ख़िलाफ़ एक नैरेटिव सेट किया कि उद्योगपति गरीबों का सिर्फ शोषण करते है I

यही कारण है कि जब टाटा ने अपना मुख्यालय बंगाल में खोलना चाहा तो उसका कड़े विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा था I बाद में ये मुख्यालय गुजरात में खोला गया I इस आंदोलन के पीछे चीन का हाथ इसीलिए माना जाता है क्योकि इन्ही आंदोलन के बदौलत और मार्क्सवादी सोच वाले व्यक्तियों द्वारा समर्थन मिलने पर देशवासियों के मन में ये घृणा बैठाई गई कि उद्योगपति ग़रीब जनता का सिर्फ़ शोषण करता है I

इसका नतीजा ये हुआ कि बड़ी बड़ी कंपनिया भारत को छोढ़कर चीन को एक सेफ प्लेस मानती गई और भारत में सभी सुविधाओं के होने के बावजूद बड़े बड़े उद्योग भारत को छोड़ चीन में बसते चले गए I 

नक्सलवाद के कारण 8 करोड़ से ज्यादा लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, जो पूरी तरह से मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन है।

इसके अलावा मोदी सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 3C रूल को अपना रही है 3C का मतलब है ; Road connectivity, Mobile Connectivity aur Financial connectivity जिसका नतीजा है कि

  • नक्सल इलाकों में हिंसक घटनाओं में 53% की कमी आई है, जहाँ 2004 से 2014 के बीच 16,463 वामपंथी उग्रवाद की घटनाए हुई वही पिछले 10 वर्षों में ये आंकड़ा 7,700 पर आ आ गया है I 
  • 2004 से साल 2014 के बीच दस साल तक 66 फोर्टीफाइड पुलिस स्टेशन बनाए गए, जबकि 2014 से 2024 तक मात्र दस में 544 पुलिस स्टेशन बनाए गए है  I
  • 2014 से पहले दस साल में मात्र 2900 किलोमीटर सड़क नेटवर्क बनाया गया जबकि मोदी सरकार में पिछले दस साल में 14400 kilometer की सड़क बनाई गई I 
  • 2014 तक इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल टावर लगाने का प्रायस भी नहीं हुआ बल्कि 2014 के बाद 2024 तक  6000 नए टावर लगाए गए जिनमें से 3551 टावर को 4G टावर में बदला जा चुका है 
  • 2014 से पहले मात्र 38 एकलव्य स्कूल मॉडल को स्वृकित किया गया था जबकि 2014 के बाद 216 एकलव्य मॉडल को स्वीकृति प्रदान की गई है जिसमें 165 अस्तित्व में आ गए है I 
  • वामपंथी उग्रवाद को रोकने के लिए 2004 से 2014 तक 1180 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि मोदी सरकार ने इस खर्च को 3 गुना बढ़ाकर 3006 करोड़ कर दिया है I इसके अलावा Special Central Assistance-SCA नाम की एक नई योजना शुरू की गई जिसके तहत 3590 करोड़ खर्चा किया गया है
  • 2004 से 2014 तक केवल 66 किलेबंद पुलिस स्टेशन बनाए गए थे, लेकिन मोदी सरकार ने पिछले10 वर्षों में 544 ऐसे स्टेशन बनाए हैंI 
  • पहले की सरकारों के दौरान  जवानों के लिए सिर्फ़ दो हेलीकॉप्टर की व्यवस्था थी अब जवानों के लिए 12 हेलीकॉप्टर है I 

कॉन्ग्रेस पार्टी ने तो साल 2004 में सत्ता में आते ही आतंकवाद के विरुद्ध सम्पूर्ण भारत में लागू होने वाले देश के पहले कानून ‘पोटा’ (Prevention of Terrorism Act) को समाप्त कर दिया था जिसका खामियाज़ा भारत कई वर्षों तक भुगतता रहा । बीते कुछ सालों में UAPA के अंतर्गत पकड़े गए आतंकियों और अर्बन नक्सलियों ने इस कानून के विरुद्ध अभियान चला रखा है।

आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी और JKLF  पर प्रतिबंध UAPA के अंतर्गत ही संभव हो पाया था। इसीलिए अर्बन नक्सली गुटों ने तुरंत इंडिया सिविल वाच जैसी संस्था पैदा की और सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा जैसों के लिए समर्थन जुटाया जिससे UAPA को ‘draconian’ घोषित कर इसे भी समाप्त किया जा सके। 

वास्तव में कॉन्ग्रेस और वामपंथी-माओवादी एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं जो हर वो कानून समाप्त कर देना चाहते हैं जिससे देश की एकता और अखंडता सुरक्षित रहती है।   एक और कानून है AFSPA I ये  अफ्स्पा वहाँ लागू है जहाँ  पाकिस्तान समर्थित युद्ध के हालात हैं।

हम जम्मू कश्मीर में पारंपरिक युद्ध नहीं लड़ रहे हैं इसलिए वहाँ स्थिति संभालने के लिए हमें अफ्स्पा जैसे कानून की आवश्यकता है। अफ्स्पा सशस्त्र सेनाओं के अधिकारियों और जवानों को यह विशेषाधिकार देता है कि वे यदि उन्हें उचित लगता है तो वे किसी संदिग्ध व्यक्ति या वाहन की जाँच कर सकते हैं, बिना वारंट गिरफ्तार कर सकते हैं या गोली तक मार सकते हैं। लेकिन इन अर्बन नक्सल को उससे भी समस्या है I ये साफ़ दर्शाता है कि ये अर्बन नक्सल उनके ही पाले हुए लोग है I 

मोदी सरकार की कई नीतियां जैसे ई गवर्ननेस की स्थापना, नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सरकारी कार्यालयों की स्थापना की गई जिससे भ्रम में फंसी जनता का विश्वास मोदी सरकार में बड़ा I न्यू इंडिया मिशन के तहत विशेष राशि देकर पिछड़े इलाकों में किए गए  विकास कार्य की वजह से जनता के विश्वास को जीतने में मोदी सरकार को मदद मिली I  

उग्रवाद को बढ़ावा देने वाले पर लगाम लगाने के लिए लोकल गुप्तचर बैठाए गए,ISRO के साथ मिलकर इज़राइली मोसाद के साथ मिलकर कई स्पेशल ड्रोन और राडार तैयार किए गए, थर्मल इमेजिंग और सैटेलाइट के ज़रिये निगरानी की गई I नक्सल  प्रभावित क्षेत्रों में सेना द्वारा घेरो, रोको और हथियार न छोड़े तो मारो जैसा अभियान चलाया गया I इस कार्य के लिए सीआरपीएफ को स्पेशल हेलीकाप्टर और  मुहैया कराया गया I 

जो इलाके पिछले कई दशकों नक्सल प्रभावित थे वैसे जिलों में बिजली, स्कूल और कोरोना में वैक्सीन की उपलब्धता होने के बाद आम लोगों का विश्वास बढ़ा जिससे नक्सलवाद को रोकने काफ़ी मदद मिली I 

बस यही कारण है कि नक्सल समस्या को खत्म करना अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की प्राथमिकता है।

आजाद भारत में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी जिले के एक गांव नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सलवाद का भारत विरोधी आंदोलन के खात्मे की अंतिम डेडलाइन गृह मंत्री अमित शाह ने  मार्च 2026 रखी है I 

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