हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार हुई दिवालिया.. सरकार के पास नहीं बचे पैसे.. मंदिरों से भीख मांग रही है कांग्रेस सरकार ...पढ़िए पूरा रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हाल ही में राज्य के मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों से धनराशि सरकारी योजनाओं के लिए मांगने का निर्णय लिया है। इस कदम का उद्देश्य 'मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना' और 'मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना' जैसी कल्याणकारी योजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना है। हालांकि, इस निर्णय ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरकार पर तीखा हमला बोला है।
सरकार का निर्णय
29 जनवरी 2025 को, हिमाचल प्रदेश सरकार के कला, भाषा और संस्कृति विभाग ने एक पत्र जारी किया, जिसमें राज्य सरकार के नियंत्रण में आने वाले 36 प्रमुख मंदिरों से 'मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना' और 'मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना' के लिए धनराशि उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया। इस पत्र में मंदिर ट्रस्टों से इन कल्याणकारी योजनाओं में योगदान देने की अपील की गई।
भाजपा का विरोध
इस निर्णय के खिलाफ विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार सनातन धर्म का विरोध करने के बावजूद मंदिरों से धनराशि मांगकर अपनी योजनाएँ चलाना चाहती है। ठाकुर ने यह भी कहा कि अधिकारियों पर मंदिरों से धनराशि प्राप्त करने के लिए दबाव डाला जा रहा है, जो निंदनीय है।
कांग्रेस का स्पष्टीकरण
वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने इन आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि 'मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना' बेसहारा बच्चों की सहायता के लिए चलाई जा रही है, और सरकार ने केवल मंदिरों से ही नहीं, बल्कि सभी संस्थाओं और व्यक्तियों से इस नेक कार्य में योगदान देने की अपील की है। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह इस मुद्दे को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है।
आर्थिक संकट और सरकारी योजनाएँ
हिमाचल प्रदेश वर्तमान में गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जिससे सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में देरी हो रही है। राज्य पर बढ़ते कर्ज़ के बोझ के बीच, सरकार ने 'मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना' और 'मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना' जैसी कल्याणकारी योजनाएँ शुरू की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य अनाथ बच्चों, एकल और निराश्रित महिलाओं, बुजुर्गों और दिव्यांग माता-पिता के बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
इस विवाद ने राज्य में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है, जहां एक ओर सरकार अपने कदम को सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक बता रही है, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक संस्थानों के धन के दुरुपयोग के रूप में देख रहा है।
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