सेवा करें हिंदू 'संत समाज' और मदर कहलाए 'टेरेसा'...पढ़े दोगले वामपंथी इतिहासकारों का पूरा सच

Feb 28, 2025 - 11:11
Apr 1, 2025 - 15:15
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सेवा करें हिंदू 'संत समाज' और मदर कहलाए 'टेरेसा'...पढ़े दोगले वामपंथी इतिहासकारों का पूरा सच

हिन्दू धर्म में संत समाज न केवल आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक रहा है, बल्कि समाज सेवा और परोपकार के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाता आया है। इसके बावजूद, वामपंथी इतिहासकारों और एक विशेष विचारधारा के समर्थकों द्वारा इस वास्तविकता को अक्सर अनदेखा किया जाता है। उनके प्रयासों का उद्देश्य न केवल हिन्दू समाज की सेवाभावी परंपराओं को हाशिए पर डालना है, बल्कि कुछ चुनिंदा चेहरों को ही "सेवा की प्रतिमूर्ति" के रूप में स्थापित करना है।

बागेश्वर धाम कैंसर अस्पताल: एक नया अध्याय

हाल ही में मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम में 252 करोड़ रुपये की लागत से 2.37 लाख वर्ग फीट में बनने वाले कैंसर अस्पताल की आधारशिला रखी गई। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य समाज के वंचित और ज़रूरतमंद लोगों को उच्च-गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिन्दू धार्मिक स्थलों द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों की प्रशंसा की।

हिन्दू धार्मिक संस्थानों द्वारा संचालित प्रमुख सेवा कार्य

हिन्दू संत समाज और मंदिर संस्थान सदियों से समाज के हर वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं—

1. पटना महावीर मंदिर का कैंसर अस्पताल – पटना स्थित महावीर मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित महावीर कैंसर संस्थान देशभर के ग़रीब कैंसर रोगियों को इलाज मुहैया कराता है।


2. गोरखपुर मठ का अस्पताल – गोरखनाथ मठ वर्षों से चिकित्सा सेवा से लेकर शिक्षा तक में योगदान देता आया है।


3. तिरुपति बालाजी मंदिर – यह मंदिर कई स्कूल, अस्पताल और धर्मार्थ संस्थाएँ संचालित करता है।


4. रामकृष्ण मिशन अस्पताल – स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित इस मिशन के तहत देशभर में अस्पताल, स्कूल और अनाथालय चलाए जाते हैं।


5. गुजरात के स्वामीनारायण संस्थान – ये संस्थान पूरे भारत में शिक्षा, चिकित्सा और अन्य समाज सेवा कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

मदर टेरेसा का महिमामंडन और हिन्दू संतों की उपेक्षा

पश्चिमी मीडिया और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा मदर टेरेसा को "सेवा और परोपकार की देवी" के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि उनके कार्यों पर कई बार सवाल उठे हैं। उनके मिशन में मिलने वाली विदेशी सहायता और रोगियों को बेहतर इलाज देने की बजाय उन्हें "दुख सहने" की सीख देने की नीति पर भी आलोचना हुई है।

इसके विपरीत, हिन्दू संतों और मंदिर संस्थानों ने बिना किसी प्रचार के लाखों लोगों की सेवा की, लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने उन्हें कभी वह स्थान नहीं दिया जो उन्होंने वास्तव में अर्जित किया है।

सेवा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने की जरूरत

समाज सेवा किसी एक विशेष विचारधारा या व्यक्ति की बपौती नहीं हो सकती। भारत में सेवा और परोपकार का मूलभाव हमारी सनातन संस्कृति में गहराई से निहित है। हिन्दू धर्म के संत और मंदिर संस्थान इस दिशा में जो कार्य कर रहे हैं, उनकी उपेक्षा कर केवल कुछ चुनिंदा चेहरों को महिमामंडित करना एक पूर्वनियोजित षड्यंत्र प्रतीत होता है।

इसलिए, आवश्यक है कि हम अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के योगदान को पहचानें, उनके कार्यों को सराहें और सही तथ्यों को समाज के समक्ष प्रस्तुत करें।

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