ममता बनर्जी का दोहरा चेहरा: वक्फ एक्ट विरोध की आड़ में इस्लामी तुष्टीकरण और कानून-व्यवस्था की अनदेखी

पश्चिम बंगाल एक बार फिर आग के हवाले है—और इस बार वजह है वक्फ एक्ट को लेकर फैलाई गई अफवाहें और इसके खिलाफ भड़की हिंसा। मुर्शिदाबाद, मालदा, नादिया और बहरामपुर जैसे ज़िलों में इस्लामी भीड़ ने खुलेआम हिंसा फैलाई, गाड़ियाँ जलाईं, ट्रेनें रोकीं, और पुलिस पर हमला किया। लेकिन राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंसा रोकने की बजाय वक्फ संपत्तियों की रक्षा की कसम खा रही हैं।
“जब तक दीदी है, वक्फ प्रॉपर्टी सलामत है” — मगर जनता का क्या?
9 अप्रैल 2025 को जैन समुदाय के एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने साफ कहा, “जब तक दीदी है, दीदी तुम्हें और तुम्हारी प्रॉपर्टी को बचाएगी।” सवाल ये है—क्या मुख्यमंत्री सिर्फ एक समुदाय की 'प्रॉपर्टी' की हिफाज़त की जिम्मेदारी लेंगी या राज्य के हर नागरिक की जान-माल की भी?
ममता बनर्जी यह दावा कर रही हैं कि जैसे ही केंद्र में भाजपा की सरकार जाएगी, वक्फ एक्ट को रद्द कर दिया जाएगा। यह बयान हिंसा को और उकसाने वाला है, न कि उसे शांत करने वाला। मुख्यमंत्री के ऐसे शब्द न सिर्फ लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मज़ाक उड़ाते हैं, बल्कि कट्टरपंथियों को भी हिम्मत देते हैं।
मुर्शिदाबाद से नादिया तक: इस्लामी भीड़ का कहर और पुलिस पर हमले
मुर्शिदाबाद में हिंसक भीड़ ने गाड़ियाँ जलाईं, पुलिस पर पथराव किया और नेशनल हाइवे को जाम कर दिया। नादिया में तो हालात इतने बिगड़े कि पुलिसवाले जान बचाकर पेट्रोल पंप में छिपने को मजबूर हो गए। ऐसी तस्वीरें राज्य सरकार की नाकामी को उजागर करती हैं।
ममता सरकार: तुष्टीकरण की राजनीति या सुरक्षा की अनदेखी?
यह पहला मौका नहीं है जब ममता बनर्जी की सरकार ने हिंसक भीड़ के सामने घुटने टेक दिए हों। 2019 के CAA विरोध के दौरान भी मुर्शिदाबाद में रेलवे स्टेशन जलाए गए थे। आज वही स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है—कानून का विरोध, अफवाहें, हिंसा, और फिर “दीदी” की ढाल।
बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने जो वीडियो साझा किए, वे डरावने हैं—पुलिस को दौड़ती भीड़, आगजनी, और ट्रेन रोकने जैसी घटनाएँ कानून व्यवस्था की खुली धज्जियाँ उड़ाती हैं। और इन सबके बीच मुख्यमंत्री केवल वक्फ प्रॉपर्टी की “हिफाज़त” की बातें कर रही हैं।
क्या बंगाल में शासन अब भी लोकतांत्रिक है, या भीड़तंत्र हावी हो गया है?
वक्फ एक्ट को लेकर चल रही हिंसा राज्य की विफलता का आईना है। सवाल ये नहीं कि कानून अच्छा है या बुरा, बल्कि ये है कि किसी भी लोकतंत्र में कानून का विरोध सड़क पर आगज़नी और आतंक से नहीं किया जा सकता। ममता बनर्जी की चुप्पी—or selective बोल—इस भीड़तंत्र को राजनीतिक वैधता दे रही है।
ममता की राजनीति या राज्य की तबाही?
ममता बनर्जी एक तरफ खुद को धर्मनिरपेक्ष कहती हैं, लेकिन दूसरी ओर खुलेआम एक समुदाय विशेष के तुष्टीकरण में जुटी हैं—even if it comes at the cost of law and order. बंगाल को आज ज़रूरत है एक मजबूत और निष्पक्ष नेतृत्व की, न कि “दीदी” की जो केवल वोटबैंक की राजनीति के लिए राज्य को आग में झोंक दे।
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