जब जब देश में जनता के खून की होली खेलने वाले नेताओं का अस्तित्व खतरे में होगा, तब-तब EVM सिर्फ़ अफ़वाहों में ख़तरे में होगी

1962 से लेकर 2001 तक देश में बैलट पेपर के ज़रिये चुनाव होते थे तब इस दौरान ये माना जाता था कि बिहार तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जिसके पास बाहुबल नहीं हैं उनके लिये चुनाव जीतना असंभव होता था। कई बार ऐसा भी देखा जाता था कि बूथ कब्ज़ाने या छापने की वज़ह से कुछ सीटों पर कुल वोटरों की संख्या से ज्यादा मतदान हो जाता था।
बिहार का एग्जाम्पल लेते है, जब साल 2004 से ईवीएम के माध्यम से चुनाव हो रहा है तब 2004, 2009, 2014, 2019 और 2024 तक 5 लोकसभा के चुनाव ईवीएम का प्रयोग करके हो चुके हैं लेकिन किसी भी चुनाव में 60% भी वोटिंग नहीं हुई है. जब यही वोटिंग बैलेट पेपर से होती थी तब 60% से अधिक वोटिंग होती थी जबकि ईवीएम में उतना ही प्रतिशत वोट दिख रहा है, जितना हो रहा है
जब बैलेट पेपर से चुनाव होते थे तब बूथ कैप्चरिंग, हथियार के दम पर वोटिंग कराना और कई तरह के इल्लीगल तरीक़े अपनाए जाते थे I कई बार तो फर्जी वोटिंग की वजह से रि-इलेक्शन कराए जाते थे, कई बार वोटिंग जनसंख्या से ज़्यादा मतपत्र निकल जाते थे जबकि ये दोनों समस्या EVM के साथ नहीं है I
बेगूसराय के रचियाही में साल 1957 में भारत का सबसे पहला पोलिंग बूथ लूटा गया था, उस दौर में बेगूसराय में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा थाI उस समय के कांग्रेस प्रत्याशी सरयुग सिंह के कहने पर उस इलाके का माफिया कामदेव सिंह ने बूथ कैप्चरिंग कराई थी I आप यहाँ के आंकड़े इसी से समझ लीजिए कि 1990 के चुनावों में सिर्फ़ बिहार में 520 चुनावी हिंसक घटनाएँ दर्ज की गईंI बिहार में शहाबुद्दीन, साधु यादव और अभी के समय के पप्पू यादव जैसे कई माफिया चुनाव को प्रभावित करते थे, जिनपर बाद में उत्तर प्रदेश में यही कहानी अतीक अहमद, आज़म ख़ान, मुख्तार अंसारी, विकास दुबे, ब्रजेश सिंह, डीपी यादव, विजय मिश्रा, बाहुबलियों श्रीवास्तव और हरिशंकर तिवारी जैसे कई माफिया थे जो चुनाव को प्रभावित करते थे I
इसके अलावा देश के कई राज्यों में स्थानीय बाबूबलियों के दम पर बूथ लूटकर चुनाव जीता गया I बिहार में धीरे-धीरे लगभग सभी माफियाओं पर लगाम लग चुका है यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 68 से ज़्यादा कुख्यात माफियाओं पर कार्यवाही की है, जिसकी वजह से पूरे ट्रांसपेरेंसी के साथ चुनाव संपन्न हो रहे है और जो लोग पहले सत्ता पर काबिज थे आज वो सत्ता के बाहर बैठकर EVM पर दोष दे रहे है I
अब समझते है कि भारत में ही ईवीएम सुरक्षित क्यों है अमेरिका जैसे tech समृद्ध देश में क्यों नहीं?
अमेरिका की 2022 के मिड टर्म इलेक्शन का डेटा देखने पर मिलता है कि 70% लोगो ने बैलट पेपर से चुनाव किया था 27 % ने BMD (बैलेट मार्किंग डिवाइस) और 7 % ने डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रानिक voting machine (DRE) प्रयोग की थी I
ये जो यूएसए में आज भी (DRE) प्रयोग हो रही है ,ये हर चुनाव से पहले ईवीएम की प्रोग्रामिंग की जाती है ये ईवीएम सीधे-सीधे इंटरनेट से नहीं जुड़ी होती हैं. इसमें उम्मीदवारों का ब्यौरा इलेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (EMS)के जरिए भरा जाता है. ईएमएस आमतौर पर लैपटॉप या डेस्कटॉप के जरिए किया जाता है. इन लैपटॉप और डेस्कटॉप का इस्तेमाल दूसरे काम के लिए भी होता है ,ऐसे में वहां की वोटिंग डिवाइस के हैक होने के चांसेज बढ़ जाते है I यूएसए की ईवीएम को बनाने का काम प्राइवेट कंपनिया करती है I
जबकि भारत ईवीएम या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन बैटरी से चलने वाली एक ऐसी मशीन,जो मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज भी करती है और वोटों की गिनती भी करती है .ये तीन हिस्सों से मिलकर बनी होती है पहला कंट्रोल यूनिट (सीयू), दूसरा बैलेटिंग यूनिट (बीयू). तीसरा वीवीपैटI भारत की ईवीएम में सभी हिस्से बिना इंटरनेट के प्रयोग किए जाते है I बात ईवीएम की प्रोग्रामिंग की है तो इसमें एक माइक्रोप्रोसेसर होता है उसे सिर्फ़ एक ही बार प्रोग्राम किया जा सकता है और इसमें कोई दूसरा सॉफ्टवेयर नहीं डाला जा सकता
यूएसए की ईवीएम को बनाने का काम प्राइवेट कंपनिया करती है जबकि भारत की ईवीएम इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलौर' और 'इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद' द्वारा किया जाता है।
अंत में एक बात समझ लीजिए कि जब जब देश में जनता के खून की होली खेल कर सत्ता पाने वाले नेताओं का अस्तित्व खतरे में होगा तब तब EVM सिर्फ़ अफ़वाहों में ख़तरे में होगी I जब जब जनता किसी भी क्षेत्र में विकास और सुरक्षा के मुद्दे पर वोट करेगी तब तब ईवीएम खतरे में होगी I
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