अब्दुल कलाम के सहयोगी वैज्ञानिक डॉ सोनकर का गंगाजल को लेकर बड़ा दावा, विपक्षी नेताओं को लगी मिर्ची

Feb 22, 2025 - 11:01
Mar 10, 2025 - 11:44
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अब्दुल कलाम के सहयोगी वैज्ञानिक डॉ सोनकर का गंगाजल को लेकर बड़ा दावा, विपक्षी नेताओं को लगी मिर्ची

गंगा, जो केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक धरोहर है, एक बार फिर अपनी शुद्धता को लेकर सुर्खियों में है। महाकुंभ में 57 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई, फिर भी गंगाजल की शुद्धता बनी रही। यह कोई सामान्य दावा नहीं, बल्कि देश के प्रख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. अजय सोनकर के शोध और प्रयोगशाला परीक्षणों का प्रमाणित नतीजा है।

गंगाजल—अल्कलाइन वाटर जैसी शुद्धता का अद्भुत रहस्य

डॉ. अजय सोनकर ने गंगाजल का परीक्षण करने के बाद स्पष्ट किया कि यह पानी केवल स्नान योग्य ही नहीं, बल्कि अल्कलाइन वाटर जैसी शुद्धता रखता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अल्कलाइन पानी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इसका pH स्तर संतुलित रहता है और यह शरीर में विषैले तत्वों को निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है।

महाकुंभ में करोड़ों लोगों के स्नान के बावजूद गंगा जल की शुद्धता पर किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव न पड़ना विरोधियों के लिए एक बड़ा जवाब है। इससे यह साबित होता है कि गंगा में कोई साधारण जल प्रवाहित नहीं होता, बल्कि इसमें प्रकृति की अद्भुत स्वच्छता और शुद्धता बनाए रखने की क्षमता विद्यमान है।

विपक्ष के आरोपों पर वैज्ञानिक तमाचा

गंगा की शुद्धता को लेकर विपक्षी दलों ने बार-बार सवाल उठाए हैं। वे गंगा सफाई अभियान और जल की स्वच्छता को लेकर आलोचना करते रहे हैं। लेकिन महाकुंभ के बाद हुए वैज्ञानिक परीक्षण ने इन सभी दावों को निराधार साबित कर दिया है। जो लोग यह कहते थे कि लाखों-करोड़ों लोगों के स्नान से गंगा जल प्रदूषित हो गया होगा, वे अब क्या कहेंगे?

गंगा की शुद्धता का यह प्रमाण उन सभी के लिए करारा जवाब है, जो हर चीज में राजनीति ढूंढने की कोशिश करते हैं। यह रिपोर्ट दिखाती है कि भारतीय संस्कृति और आस्था के प्रतीक गंगा के बारे में गलत धारणाएँ फैलाने वालों को पहले वैज्ञानिक तथ्यों पर गौर करना चाहिए।

गंगाजल की शुद्धता—धार्मिक नहीं, वैज्ञानिक सत्य

गंगा जल की शुद्धता कोई केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तथ्य है। कई शोधों में पाया गया है कि गंगाजल में ऐसे बैक्टीरियोफेज होते हैं, जो जल को स्वाभाविक रूप से शुद्ध बनाए रखते हैं। यही कारण है कि वर्षों तक रखे जाने पर भी गंगाजल खराब नहीं होता।

डॉ. अजय सोनकर ने खुली चुनौती देते हुए कहा है कि यदि किसी को उनके दावे पर संदेह है, तो वे स्वयं प्रयोगशाला में परीक्षण कर सकते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि यह केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सत्य है।

निष्कर्ष—गंगा की शुद्धता पर राजनीति नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएँ

विपक्ष को अब समझना होगा कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक चमत्कारिक धरोहर है, जिसका वैज्ञानिक आधार भी है। 57 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान के बाद भी गंगाजल की शुद्धता का बना रहना इस बात का प्रमाण है कि गंगा में प्रदूषण से लड़ने की असाधारण क्षमता है।

जो लोग गंगा की शुद्धता पर संदेह करते हैं, वे पहले इसके वैज्ञानिक रहस्यों को समझें, न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए झूठे आरोप लगाएँ। विज्ञान और अध्यात्म के संगम का यह अद्भुत उदाहरण हमें गर्व करने का अवसर देता है, न कि निराधार बहस में उलझने का।

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